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जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार से क्या-क्या निकला, भगवान का सोने से श्रृंगार समेत जानिए अनसुने रहस्य

जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार से क्या-क्या निकला, भगवान का सोने से श्रृंगार समेत जानिए अनसुने रहस्य

पुरी। ओडिशा में श्री जगन्नाथ मंदिर के भीतर रत्न भंडार में संग्रहीत सभी कीमती सामान और आभूषणों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया गुरुवार शाम तक पूरी हो जायेगी। पुरी गजपति दिव्यसिंह देव ने बताया कि श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाधी की प्रत्यक्ष देखरेख में 11 सदस्यीय समिति ने आज सरकार द्वारा तय एसओपी के अनुसार मंदिर के भीतर रत्न भंडार में प्रवेश किया।
पुरी गजपति ने भी भीतर भंडार में प्रवेश किया और बाद में संवाददाताओं को बताया कि भगवान के कीमती सामान और आभूषणों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है और उम्मीद है कि यह आज शाम तक पूरी हो जायेगी। उन्होंने कहा कि इन सभी कीमती सामानों को फिलहाल मंदिर परिसर के अंदर ‘खताशेजा कक्ष’ में स्थानांतरित किया जाएगा, जहां इन आभूषणों को अस्थायी स्ट्रांग रूम में रखा जायेगा।
-रत्न भंडार से क्या क्या निकला?
अभी जगन्नाथ मंदिर में रत्नभंडार से क्या क्या मिला है, इसकी आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। अभी तक इन सामानों की इन्वेंटरी नहीं हुई है। इसे भंडार की मरम्मत के बाद किया जाएगा। बताया जा रहा है कि हीरे जवाहरात और सोने से भरे 12 बक्से हैं। जब पहले 1805 में चार्ल्स ग्रोम की ओर से खजाने का डॉक्यूमेंटेंशन किया गया था, उस दौरान 64 सोने चांदी के आभूषण थे। साथ ही 128 सोने के सिक्के, 1,297 चांदी के सिक्के, 106 तांबे के सिक्के और 1,333 प्रकार के कपड़े थे।
-महाराजा रणजीत सिंह समेत कई राजाओं ने किया था दान
रिपोर्ट्स के अनुसार, 12वीं सदी में मंदिर के बनने के बाद 15वीं सदी में सूर्यवंशी राजा महाराजा कपिलेंद्र देव ने मंदिर को काफी दान दिया था। उस दौरान कपिलेंद्र देव ने मंदिर में सोना, चांदी, कई कीमती हीरे आदि दान किए थे। ये भी कहा जाता है कि जब कपिलेंद्र देव ने यहां दान दिया था, उस वक्त वे कई हाथियों पर सामान लाए थे, जो उन्होंने मंदिर को दान दिया था। इनके अलावा महाराजा रणजीत सिंह ने भी काफी भारी मात्रा में श्री जगन्नाथ मंदिर को सोना दान किया था। रणजीत सिंह की वसीयत में कोहिनूर को भी जगन्नाथ मंदिर देने की बात कही गई है। इनके अलावा भी कई राजाओं ने यहां दान दिया और जिसके बाद यहां ‘सुना बेशा’ की परंपरा शुरू हुई, जिसमें भगवान का सोने से श्रंगार किया जाता है।
एएसआई ने 1971 में 12वीं सदी के मंदिर के संरक्षण का जिम्मा संभालने के बाद से इन संरचनाओं की मरम्मत नहीं की गई थी इसलिय़े बाहर और भीतर रत्न भंडार दोनों की जर्जर दीवारों की मरम्मत जरूरी है। दिव्यसिंह देव ने कहा कि एएसआई मंदिरों की जांच करके यह पता करने की कोशिश करेंगे कि मंदिर में रत्न भंडार के अंदर कोई गुप्त कक्ष अथवा गुप्त सुरंग तो नहीं है। पुरी नरेश ने कहा कि मंदिर के भंडारों की मरम्मत पूरी होने के बाद कीमती सामान और आभूषणों को फिर से उनके मूल स्थान पर वापस ले जाया जाएगा और वर्ष 1978 के रिकॉर्ड में उल्लेखित कीमती सामान का मिलान करने के लिए कीमती सामान की सूची बनाई जायेगी।

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