
सी.जी.प्रतिमान न्यूज: 6 जून /भारत में जब हम किसी स्थान का पता पूछते हैं, तो “गली नंबर”, “मोहल्ला”, “पोस्ट ऑफिस”, और अंत में “पिन कोड” जैसे पारंपरिक शब्द सुनने को मिलते हैं। लेकिन अब भारत के डाक विभाग ने इस पूरी परंपरा को डिजिटल तकनीक के साथ जोड़ने FC का ऐतिहासिक कदम उठाया है “डिजिपिन (DIGIPIN)”। 21वीं सदी की यह तकनीकी पहल देश को डिजिटल युग में एक कदम और आगे ले जाता है, जहां हर चार मीटर X चार मीटर का स्थान अब अपनी एक अल्फा-न्यूमेरिक डिजिटल पहचान रखेगा।
डिजिपिन (Digital Postal Index Number) एक 10-अंकों का अल्फा-न्यूमेरिक कोड है, जिसे डाक विभाग ने विशेष रूप से भारत के हर हिस्से की भौगोलिक पहचान को और अधिक सटीक बनाने के लिए विकसित किया है। यह कोड एक 4m x 4m के छोटे क्षेत्र को दर्शाता है। यानि, आपके घर का छत, किसी दुकान का कोना या किसी फ्लैट का विशेष हिस्सा, हर स्थान को अलग-अलग डिजिटल पहचान मिल सकता है। इसकी विशेषता है कि यह अंकों का यूनिक कोड है जो जियो-कोडिंग आधारित होता है, जो ओपन-सोर्स और इंटरऑपरेबल सिस्टम से सटीकता का उच्च स्तर (4×4 मीटर) तक पहुंचता है। इसे आईआईटी हैदराबाद और इसरो के सहयोग से विकसित किया गया है।

भारत का पारंपरिक पिन कोड सिस्टम 1972 में शुरू हुआ था। लेकिन यह सिस्टम एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र को दर्शाता है, जैसे कि एक मोहल्ला, कस्बा या शहर का कुछ हिस्सा। डिजिपिन, पिन कोड को हटाएगा नहीं, बल्कि उसे पूरक बनकर उसकी उपयोगिता को और ज्यादा बेहतर बनाएगा।
देश के बड़े हिस्सों में पता बताने का कोई स्टैंडर्ड तरीका नहीं है। कई बार एक ही नाम की गली या एक जैसे नाम वाले मोहल्ले होते हैं। डिजिपिन इस भ्रम को खत्म करता है। ऑनलाइन खरीदारी और फूड डिलीवरी जैसे क्षेत्रों में हर मिनट महत्वपूर्ण होता है। सटीक लोकेशन से न सिर्फ समय की बचत होगी, बल्कि डिलीवरी की सफलता दर भी बढ़ेगी। भूकंप, बाढ़, या अग्निकांड जैसी आपदाओं के समय राहत कार्यों में डिजिपिन जैसी सटीक पहचान प्रणाली बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। मनरेगा, राशन, गैस वितरण, स्वास्थ्य सेवाएं जैसी योजनाओं को सही व्यक्ति तक पहुंचाना डिजिपिन के जरिए आसान होगा।
डिजिपिन से एड्रेस गलत होने के कारण डिलीवरी फेल होने की घटनाएं कम होगी। रिटर्न/रिफंड की प्रक्रिया तेज होगी। सरकारी योजनाएं और सब्सिडी सही लाभार्थी तक पहुंच बढ़ेगी और डुप्लिकेट और फर्जी पते की समस्या खत्म होगी। एम्बुलेंस सेवा को पिन की सटीकता से तेज प्रतिक्रिया का मौका मिलेगा। राहत सामग्री पहुंचाने में उच्च सटीकता, गूगल मैप्स और GIS सिस्टम्स में बेहतर इंटीग्रेशन, हर प्लॉट की डिजिटल पहचान और मास्टर प्लानिंग में सहायता मिलेगा।
डिजिपिन पूरी तरह से लोकेशन-आधारित प्रणाली है। यह किसी भी व्यक्तिगत जानकारी से नहीं जुड़ा होता है। इसका मतलब है कि कोई आपकी पहचान नहीं निकाल सकता सिर्फ डिजिपिन से। यह डेटा सरकारी सुरक्षा मानकों के अनुसार एन्क्रिप्टेड और गोपनीय होता है। उपयोगकर्ता जब चाहें अपने डिजिपिन को साझा कर सकता हैं या गोपनीय रख सकता हैं।
“डिजिटल इंडिया” का सपना तभी पूरा होगा जब देश की बुनियादी व्यवस्थाएं भी डिजिटल बनें। डिजिपिन इस दिशा में डिजिटल पते की बुनियादी जरूरत को पूरा करता है। जैसे हर व्यक्ति का आधार नंबर है, वैसे ही अब हर स्थान का डिजिपिन होगा। इससे न सिर्फ हमारी डाक व्यवस्था बल्कि पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर और सेवा तंत्र और सशक्त होगा।
भारत से पहले भी कई देशों में लोकेशन कोडिंग सिस्टम अपनाया गया है। मोज़ाम्बिक, घाना, नाइजीरिया में What3Words आधारित सिस्टम, जर्मनी, अमेरिका में ZIP+4 कोड्स और दक्षिण कोरिया में Addressing System लागू है। लेकिन डिजिपिन का स्केल और तकनीकी मजबूती भारत को इस क्षेत्र में ग्लोबल लीडर बना सकता है।

भविष्य में डिजिपिन केवल डाक सेवा तक सीमित नहीं रहेगा। बल्कि आने वाले समय में रेलवे टिकटिंग, बस सेवा, टैक्सी बुकिंग में यह पता आधारित सिस्टम का हिस्सा बन सकता है। कृषि भूमि, जंगल क्षेत्र, नक्सल प्रभावित इलाकों की ट्रैकिंग में मदद कर सकता है और सेना, सीमा सुरक्षा बल, पुलिस और आपदा राहत दलों के लिए रीयल-टाइम लोकेशन मैपिंग का साधन बन सकता है।
