

नई दिल्ली / पिछले दिनों एक फैसले में भारत के उच्चतम न्यायालय ने पेड़ कटाई पर सख्ती दिखाई है ।सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर्यावरण की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।अदालत ने पेड़ों की कटाई को मनुष्य की हत्या से भी बदतर बताया है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों पर कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए यह कहा।
2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की स्थापना का मकसद पर्यावरण संबंधी मामलों को निपटाने के लिहाज से शुरू गया। मगर वह भी अपनी भूमिका निभाने में प्रभावी होता नहीं नजर आ रहा है।

पर्यावरण के बिना मानव जीवन का कोई अर्थ ही नहीं है। पर्यावरण धरती का एक आवरण है और जब आवरण हटा दिया जाता है तो क्या बचता है अनावृति। आज हम आधुनिकीकरण की अंधेरे दौड़ में पर्यावरण के प्रति अनावरणपन ही दिखा रहे हैं।हम आधुनिकीकरण की आड़ में पर्यावरण का विनाश कर रहे हैं।
“पर्यावरण है तो जीवन है और जल है तो कल है”
देखिए हम पानी के साथ ऐसा कर चुके हैं जिसका खामियाजा है कि वर्तमान में भयानक जल संकट देखने को मिला है। मानव जीवन के लिए पर्यावरण के जीवन को नष्ट नहीं कर सकते क्योंकि धरती पहले है मानव बाद में धरती बचेगी तो ही मानव जीवन बच पाएगा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कहा था 2025 आते-आते तीन में से दो व्यक्तियों को नहाने का पानी मिलेगा यह दूरगामी सोच थी उनकी।

खबर विस्तार से:
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को राजधानी के क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण के लिए पेड़ काटने पर अवमानना का दोषी ठहराया। आदेशों का जानबूझकर पालन न करने को गलत प्रशासनिक निर्णय ठहराते हुए,व्यापक वन रोपण का आदेश दिया।साथ ही अधिकारियों पर पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना लगाया। इससे पहले भी पेड़ों की अवैध कटाई को सुप्रीम कोर्ट ने इंसान की हत्या से भी बदतर कहा। पीठ ने संबंधित प्राधिकरण की अनुमति के बगैर पेड़ों की अवैध कटाई और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों पर कोई दया न दिखाने को कहा। माना जा रहा है कि अदालत द्वारा मानक तय कर दिया गया है, ताकि ऐसे मामलों में जुर्माना लगाया जाए। पीठ ने इतने पेड़ लगाने व हरित क्षेत्र बनाने में सौ साल का वक्त लगने की बात भी की। देश में सरकार की अनुमति के बगैर हरे वृक्षों को काटने पर पाबंदी के बावजूद बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाते हैं। पेड़ काटने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है, जिसमें पेड़ का विवरण, उसकी शाखाएं, स्वामित्व का प्रमाण व स्थिति के विषय में विवरण देना होता है।

वन क्षेत्र की कमी व तेजी होते शहरीकरण, औद्योगीकरण,वनों के अवैध उपयोग के चलते पेड़ों की कटाई आम समस्या है। वन अधिनियम 1927 की धारा 26 व 379 में मामला दर्ज हो सकता है।
हालांकि बढ़ते यातायात को देखते हुए सड़कों को चौड़ा किया जाना भी जरूरी है और विकास के लिए अधिकरण की जाने वाली आवश्यक भूमि की अवहेलना भी नहीं की जा सकती, परंतु नियम- कानून की अवहेलना करने वालों पर सख्ती बेहद जरूरी है। वरना ग्लोबल वार्मिग की चपेट में आ चुके पर्यावरण की क्षतिपूर्ति असंभव हो सकती है। पेड़ों की अधाधुंध कटाई को वन रोपण से रोका तो नहीं जा सकता मगर कुछ हद तक लगाम जरूर लगाई जा सकती है। पुराने पेड़ों को एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने की आधुनिक तकनीक का प्रयोग करना भी संबंधित विभागों को सीखना चाहिए। क्योंकि हर मामले का निपटान अदालत द्वारा किया जाना भी मुश्किल है। इसलिए तौर-तरीकों में व्यावहारिकता को प्राथमिकता दी जानी उचित होगी।
