आम जनता के हित के लिए "आम चुनाव" होता है या राजनैतिक दल/ उनके जनप्रतिनिधियों के हित के लिए होता है !!
आम जनता मानती है की "आम चुनाव" ( लोक सभा/ विधान सभा) उनके हित/ विकास/ भले के लिए ही होते है, आम जनता मानती है की इन आम चुनावों पर उनका ही नियंत्रण/ प्रभाव बना रहता है, आम जनता इस पर से "चुनाव आयोग" पर भरोसा करती है ।
आम जनता गर्मी मौसम में दो तीन चरणों में चुनाव चाहती है, लेकिन चुनाव आयोग आम जनता की भावना के विपरीत लगभग सात(७) चरणों में और लंबी अवधि( एक माह से ज्यादा) का चुनाव तिथियां घोषित करती है।
इन विभिन्न चुआव चरणों में राजनैतिक दल उनके जनप्रतिनिधि हर चुनाव चरण में एक दूसरे को "ऊंचा या नीचा" दिखाने में ही " धार्मिकता" " दो समुदाय का संघर्ष" " पड़ोसी देश" "एक दूसरे पर छींटा कसी" आदि तरह के बातो/ मुद्दों को लेकर चुनाव प्रचार प्रसार कर रहे है, आम जनता के लिए अपने अपने "चुनावी घोषणा पत्र " में आम जनता के लिए कही गई बातो/ मुद्दों को लेकर चुनाव प्रचार प्रसार नही हो रहा, आम जनता को लगने लगा इसलिए लम्बे चरणों वाली चुनावी तिथियां निर्धारित की गई ताकि "राजनैतिक दल/ उनके जनप्रतिनिधि/ सत्ता पक्ष को ही लाभ/ फायदा हो सके।
आम जनता के सामने एक पक्षीय टी वी न्यूज चैनल्स/ समाचार पत्र , एक पक्षीय चुनाव प्रचार प्रसार किसी एक राजनैतिक दल/ उनके जनप्रतिनिधि के लिए कर रहे है,उनके एक पक्षीय “इंटरव्यू” प्रचारित प्रसारित कर रहे है, आदर्श आचार सहिता का घोर उल्लंघन हो रहा है। आम जनता से जुड़ी गंभीर घटनाए एक ” विशाल होर्डिंग” गिरने से एवं चार धाम यात्रा में लोगो की मौतें होने को प्रमुखता नही दी गई । आम जनता को महसूस हो रहा है की उनका “आम चुनाव” बताकर उन्हे ठगा जा रहा है, इस आम चुनाव पर उनका(आम जनता) प्रभाव एवं नियंत्रण नहीं है, बल्कि ” जन प्रतिनिधियों” के हित एवं सुविधा के अनुरूप आम चुनाव हो रहा है।
आम जनता को महसूस होना चाहिए की उपरोक्त बातो के लिए वह स्वयं ” जिम्मेदार” है क्योंकि राजनैतिक जनप्रतिनिधियों के सही/ गलत भाषणों/ वक्तव्यों से प्रभावित एवं आकर्षित हो कर आम जनता ” धार्मिकता, जातीयता, समुदाय को लेकर, क्षेत्रियतता” के आधार पर ” आपस” में बट गए है ,बिखर गए है।आम जनता के हित को लेकर आम चुनाव नही होने की ” व्यवस्था” बन गई दिखती है, ” इस व्यवस्था” को स्वयं “आम जनता” ही आपस में एक होकर हटा सकती है।